मंगलवार, 24 नवंबर 2015

सफ़र ज़िंदगी का


देश मैं आज कल रोज़ हो रही  चें - चें  से तंग आ गया हूँ कोई कहता मुझे इस देश को छोड़ कर चला  जाना चाहिये।
और कोई कहता क्यों जाएँ।
मेरी समझ से बहार हे  की कब समझेगी ये वेवकूफ जनता सही क्या गलत क्या मुझे लगता हे इस देश की जनता को सब कुछ फ्री मैं मिले ,
जहाँ चाहें थूक दें जहाँ चाहें मूत दें  .
लेकिन ये सब मैं क्यों लिख रहा हूँ ,
कहते हैं के देश मैं रहना सुरक्षित नहीं ,भाई मुझे याद हे, वो दिन जिस दिन इंद्रा गांधी को एक सिख ने मर दिया था । उस वक़्त मैं मथुरा मैं पड़ता था और रहता था बाद रेलवे कॉलोनी, रोज़ मुझे १० किलोमीटर  ट्रैन से जाना होता था, मथुरा पड़ने के लिए
और उस दिन भी  मथुरा गया जब अपने स्कूल पहुंचा तो देखा की स्कूल बंद वहां से अपने  कुछ दोस्तों के साथ बाजार की तरफ चल दिया वहां जो देखा उसको देख कर हैरान था पुलिस खड़ी सिर्फ लाउड स्पीकर पर चिल्ला रही थी । और लोग दुकानों मैं आग लगा रहे थे जिसको जो मिल रहा था लूट रहा था लोग बेखौफ अपने काम को अंजाम दे रहे थे ।
उस वक़्त मेरी उम्र १३ साल की होगी मेरी समझ से सब बहार था तभी एक आवाज़ आई की कर्फू लग चूका हे देखते ही गोली मारने के आदेश ,मैंने भी डेम्पियर नगर से भागना चालू किया और स्टेट बैंक चौराहे  आया देखा तो लगा क्या यही हे अपना देश , टायर के बीच मैं जिन्दा जला  दिया था दंगाइयों ने,, डर से मेरा बुरा हाल था ।और फिर धोलीप्याऊ की, तरफ  चल दिया ,वहां तो और भी बुरा  हाल था ।
उस दुकान को लोग जला रहे थे लोग जिस दुकान से मैं कभी जूते पहना करता था । सब पागल थे वहशी  की तरह हाथों
में न जाने क्या क्या लिया था और तीन मंज़िला घर की छतों पर मौत का नंगा नाच कर रहे थे । उस घर
सरदार जी थे और उनकी तीन बेटियां थी अंदर से दरवाज़े बंद थे लोगों ने चारों तरफ से घेर कर घर और  दुकान को  जला दिया था अंदर चार ज़िंदगी ,मुझे लगा अब ये लोग नहीं बच पाएंगे
मुझे बाद मैं पता चला की सरदार जी ने खुद अपनी तीनों बेटियों को अपनी तलवार से मार दिया था, क्या तब देश असहिष्णु नहीं था या सहिष्णु पता नहीं ,
इतना जनता हूँ की अपनी कुर्सी की खातिर  लोग किसी को भी  मार देते हैं। .
डरते वो लोग हैं जो ऐसे घरों मैं रहते हैं जहाँ  परिंदा  भी पर ना मार सके। मरता वो हे जो फूटपाथ पर जीवन बसर करता हे और वो माध्यम बर्गीय जीवन जीने बाले ,,,
यहाँ पर डर अगर कोई पैदा करता हे तो  वो हे मीडिया
जो दिन भर चिल्लाता रहता हे, डर नहीं तो ?
बीच मैं थोड़ा सा भटक  गया हूँ
जब धोली प्याऊ से मैं घर पहुंचा ।
देखा घर मैं तखत बन रहा था और उसको जसबिन्दर सरदार जी बना रहे थे ।
और मेरे पिता जी वहीँ पर खड़े हुए थे और रेडिओ पर समाचार आ रहे थे जो की सिर्फ डर पैदा कर रहे थे
कि तभी सरदार जी ने मेरे पापा की तरफ देखा ,,
पापा जी कुछ कहते ,, की सरदार जी ने कहा पंडित जी मुझे डर लग रहा
मेरे पापा ने कहा तुम चिंता न करो यहाँ क्या इस रेलवे कॉलोनी मैं तुमको कोई हाथ नहीं लगा सकता  विस्वाश था अपने आप पर ।
तब क्या देश सहिष्णु था  या असहिष्णु मुझे मालूम नहीं था लेकिन आज क्या हुआ हे ऐसा लगता हे सब जान बुझ कर किया जा रहा हे ,,
तभी एक  दिन मुझे मेरे बड़े भाई ने बुलाया  और कहा,ये  ब्रेड और दूध ले कर जाओ।
कहाँ मैंने पूछा तो मुझे एक ब्लॉक का पता बता दिया
जैसे  चला ,भाई ने कहा घंटी बजा देना मैंने  कहा हाँ
और कुछ देर बाद मैं वहां पर घंटी बजाई अंदर से आवाज़ आई कौन
मैंने अपना नाम बोला दरवाज़ा खुला तो मैं ये देख  कर दंग था
 मेरे सामने सरदार जी थे  मुझे नाम याद नहीं लेकिन वो मेरे सामने थे जिनके बालों को काट दिया गया था
उनको भी लोगों ने मारने की कोशिश की थी क्या यही हे वो आज हर चैनल पर हे ।
भाई बंद करो कुछ तो पॉजिटिव दिखाओ ।
राजनीति बंद करो इंसानियत तो दिखाओ
चलो आओ। …
सफ़र ज़िंदगी का







गुरुवार, 19 नवंबर 2015


pankaj agra colleg agra main padta hey kyonki uska ghar vahan se door hey isliye usne apne ak dost nagar ke ak kothi main ghar kiraye par le rakha hey .

ak din pankaj raat ko kareeb 12 baje chai peeney ko nikalta hey. or uski us raat main bhadavar se mulakt hoti hey.

bhadavar pankaj ko bolta hey ki uske ghar ke bagal main gudiya rehti usey pyar karta hey .
or pankaj ko sari kahani batata hey.

gudiya ko vo bahut pyar karta hey vo uske khuabon ki mumtaj hey .

kyonki uski pehli mulakat taaj mehal par hui thi.

or  gudiya or mere payar ko uski mom ko bhi pasand tha lakin ak din kya hua jiska mujhe pata nahin or us din se uski mom ne mere liye ghar ke darvaze band kar diye or main ussy nahin mil pata hun

main chahta hun ki gudiya se milne main tum meri madad kar sakte ho.

bhadavar ko  gudiya se jab bhi milna hota pankaj ke sahare mil leta hey or iska pata kisi ko nahin chalta hey.

idhar kisi ko p[ata nahin hota hey ki gudiya ki mom jo ki agra colloge phorofesar hain unka kabhi us colloge ke pirecncipal mukhtayar se unko kabhi pyar tha.

lakin ak roz bhadavar ko pata chalta hey ki mukhtayar kabhi chandni se shadi karna chahta tha

lakin chandni ko dr mathur or mukhtayar donon ne colloge time main prepose kiya lakin

chandni ne bola ki tum donon main se jiski bhi p.h.d pehle hogi main usey shadi kar lungi

or p.h.d dr mathur ki pehle ho jati or isliye shadi bhi dr mathur se or uske baad mukhtayar kabhi shadi nahin karta hey.

lakin gudiya or ankit ke paida hone ke baad dr mathur ak accsident main khatm ho jate hain .or chandni pura ghar dekhti hain.

isi beech pankaj ka room partner nagar bhi aa jata hey or mama bhi tha to vo nagar ka mama lakin vo jagat mama ban jata hey.

idhar kisi ko bhi pata nahin chalta hey kab nagar or gudiya ak dusre ko pyar karne lagte hain.

lakin bhadavar ko shaq ho jata hey or vo pankaj ko varn karta hey ki vo nagar se kahe ki gudiya se door rahe .

or isi baat par bhadavar ki apas main ladai hoti hey or pankaj hi hamesha is ladai ko khatm karta hey

lakin ak din pankaj ko shaq ho jata hey ki gudiya or nagar ke beech main kuch pak raha hey .

or ak din pankaj gudiya se puch leta hey ki ye tum donon ke beech ye kab se chal raha hey .

gudiya pankaj ko sab batati hey .

lakin kuch aisi baten hoti hain jiske baad gudiya pankaj ko bolti hey ki vo nagar se apne aap ko door kar legi.

or idhar chandni gudiya ke liye ladke ki talash karne lagti hey kyonki aye din bhadavar gudiya ke ghar aa kar kuch na kuch harkaten karta rehta.

idhar gudiya or nagar ko pankaj fir se kis karte hue pakad leta hey.

pankaj or nagar gudiya ke beech main apas main behas hoti hey ki hum donon room partner hain or mujhe ye pata nahin ki mera dost ak ladki se pyar karta hey. jiske liye main hamesha bhadavar se lad jata hun. lakin main galat tha bhadavar sahi .

 pankaj uske baad apne ak dost se baat karta hey ki vo room  chodne ki baat karta hey .

idhar chandni gudiya ki shadi tay kar deti hain jiske baad nagar or bhadavar shadi rokne ki kasis karte hain.

gudiya ki shadi ke card bant chuke hain tabhi chandni ke paas ak court notice aata hey ki gudiya ki shadi bhadavar ke sath ho chuki or usmen ak church ka certifiket bhi hota hey.

chandni pareshan ho jati hain or polic main report karti hain or fir police us charch ke padri se milti jahan pata chalta hey ki sari chal bhadavar ki hey.

chandni vapis ghar ati hey to pata chalta hey ki gudiya nahin hey

apne  bete se puchti to beta bolta hey ki ak jeep main  deedi gai or us gadi ka number bolta hey

chandni police ko bolti hey kahin ye sab bhadavar ki chal to nahin hey,
or fir police us jeep ko treac karti hey

pata chalta hey ki jeep mathura ki taraf gai hey

chandni police ko sath main le kar jeep ka peecha karti hey

or police barsana pahunch jati hey

jahan par laatthmaar holi hey.

or vahan par police ko bhadavar mil jata hey or fir gudiya bhi .

police bhadavar ko le kar jail main daal deti hey .

bhadavar sabko bolta hey ki gudiya ki life main khatra hey tum log mujhe galat samajh  rahe ho

main pyar karta hun gudiya ko uski life khatre main hey

lakin koi bhi uski baat nahin sunta hey .

or udhar gudiya ki shadi ho rahi hey

ki tabhi bhadavar jail se bhag jata hey

or seedha jahan gudiya ki sadi ho rahi hey

or vahan par pankaj bhi nagar bhi ki tabhi nagar gudiya ki taraf goli chala deta hey lakbhadavar in vo goli gudiya ko nahin bhadavar ko lagti hey

police nagar ko pakad leti hey.

sabhi bhadavar ki taraf bhagte hain gudiya chandni ki taraf dekhti hey tabhi mukhtayar bolte ja beta vo tujhe sacha pyar karta hey jo apni maa ki taraf mat dekh or gudiya bhadavar ki taraf bhagti hey or peechey peechey  chandni bhi

or isi darmayan mukhtayar vahan se nikal ke ja raha hota hey.

tabhi bhadavar chandni ko bolta hey ki vo apko aaj bhi pyar karte hain main dekha hey .

kya ab bhi kisi phd ka intzar hey.

chandni ak baar gudiya ki taraf dekhti hey gudiya bhi han main ishara karti hey

or chandni mukhtayar ki taraf chal deti hey

gudiya or bhadavar donon khush ho jate hain.


...
last car main chandni pehle se baithi hui hain jaise hi mukhtayar door open karta hey dekhta hey ki chandni vahan par pehle se hain

chandni kya fir se phd karni hey

mukhtayar muskara deta hey

....




























मंगलवार, 10 नवंबर 2015

सफ़र फिर से रफ़्ता - रफ़्ता  शुरू करें। 


देश की राजनिती मैं बहुत सारे पैबंद हैं  लकिन इनसे किसी को लेना देना नहीं क्योंकि यहाँ सारे इमोश्नल  फूल हैं । 
और यहाँ के नेता ऐसी जनता को वेवकूफ़ बनाना खूब जानते हैं । 
लिखना कुछ चाहता था लिख कुछ रहा हूँ ,लेकिन जो मैं लिखना चाहता हूँ। उसका सीधा संबंध हम सबसे हे । 
ये बात हे २००१ के आस पास की तब देहली मैं था और फ्रीलान्स काम कर रहा था । 
तभी  एक दिन मुझे एक कॉल आया भोपाल जाना हे एक शूट हे ,मैं यहाँ पर किसी का नाम नहीं  लिखना चाहता हूँ । 
और एक हिदायत भी दी गई की इस शूट के बारे मैं किसी से ज़िक्र नहीं करना जब तक हम नहीं कहते हैं । 
मुझको सिर्फ अपने काम और दाम से मतलब था मैंने कहा ठीक हे मैं किसी के साथ भी इस शूट का ज़िक्र नहीं करूँगा । 
और फिर तय तारीख़ को हम सब पालाम एयरपोर्ट पर थे । 
हम कुल मिलाकर ५ लोग थे । मेरा परिचय वहां पर मौजूद एक सरदार जी से कराया गया । 
जो की किसी सांसद के बेटे थे और वो सांसद पंजाब से सांसद थीं । मुझे क्या लेना देना इन सब बातों से काम करना हे । 
और फिर हम सब भोपाल की फ्लाइट मैं थे अगर मेरी याददास्त ठीक हे तो कुल मिलकर पूरी फ्लाइट मैं १० लोग होंगे । 
फ्लाइट के अंदर का ढांचा मंशा अल्ला था किसी बटन को दबाओ बटन हाथ मैं पुरे सफ़र मैं खड़ खड़  की आवाज़ । 
 एक डर सा लग रहा था बस सही सलामत भोपाल आ जाये । 
और फिर मुझे उस छोटे से रास्ते मैं शूट क्या करना हे और कैसे करना हे  शूट क्या बताया गया । 
और मुझे तब पहली बार बोला गया की ई.वी.म मशीन का शूट करना हे । 
यानि हमारी वोटिंग मशीन का और वो हमारे साथ मैं थी । 
और कुछ देर बाद आवाज़ आई की आप अपनी बेल्ट को बांध लें । 
इसका मतलब साफ़ था की भोपाल आ गया कोई अनहोनी घटना नहीं हुई । 
और हम कुछ देर बाद उस होटल मैं थे जहाँ शूट करना था और रुकना भी वहीँ था । 
लेकिन कुछ देर बाद पता चला जिन लोगों के साथ शूट करना हे वो नागपुर से आ रहे हैं और भोपाल तक  आने मैं टाइम लगेगा। 
और फिर क्या इंतज़ार पूरी रात सुबह २ लोग  नज़र आये पता चला की ये लोग ही ई.वी.म  का ऑपरेशन करेंगे । और  शुरू हुआ ऑपरेशन का दौर क्योंकि बंद कमरे मैं शूट करना था । 
अपने ओजार के साथ मशीन के अंजर - पंजर खोल के सारे बहार  किये  सिर्फ एक चिप चेंज की और  फिर मशीन को बंद किया । 
जैसा की उन दोनों ने बताया की वो साऊथ से ले कर नार्थ तक ये  काम करते हैं । 
इसके अंदर एक चिप को ही चेंज करना होता हे और उसको बदलने मैं सिर्फ १० मिनट लगते हैं । 
अब ये काम किस तरह करता हे, ये भी मालूम हो तो,
इसके काम करने का तरीका बिलकुल सीधा हे आप जिस नेता को जिताना चाहते हैं उसको किस प्रतिशत के हिशाब से वोट ट्रांसफर  हो वो सेट कर दिया जाता हे 
अगर आप आप को जिताना चाहते हैं तो बीजेपी कांग्रेस जनता दल इन सबसे वोट ट्रांसफर हो कर आप के कहते मैं चले जायेंगे ,लेकिन  ये सब होगा तब  जब पोलिंग बूथ अफसर आपका हो। क्योंकि उसको ही उस बग को चालू करना होगा ।


ये स्टोरी  करीब ६ मंथ के बाद ztv पर टेलीकास्ट हुई। और उसके बाद ही किसी  के साथ मैंने  इस कहानी को शेयर किया । 
मैं कहूँगा कि हाँ evm के साथ छेड़ छाड़ की जा सकती हे । 
सफर का अंत 
कोई नहीं हे यहाँ संत 
क्योंकि यहाँ आस्तीन के सांप हैं अनंत 
कब कौन डस ले आपको 
काटे का इलाज़ नहीं होता हे तुरंत 
कोई नहीं हे यहाँ संत --
नीरज तिवारी 

 



सोमवार, 28 जुलाई 2014

रफ्ता - रफ्ता  की यादों मैं बहुत कुछ है , उन्हीं धुंधली यादों मैं से एक याद हे | पाकिस्तान यात्रा की ...
तारीख तो मुझे याद नहीं लेकिन साल होगा 2003 ..अगर तारीख देखनी होगी तो पासपोर्ट को उलट - पलट कर देखना होगा |
शाम को करीब 4 बजे होंगे जब हम पाकिस्तान हाइ कमीशन मैं थे क्योंकि वीसा मिलना था लेकिन हम को बोला गया कि शाम को सात बजे आना |
वीसा तो मिल गया था लेकिन असल जद्दोजहद जाने की थी क्योंकि उस वक़्त  हवाई रास्ता बंद था | ये  भारत ओर पाक की सरकार का मामला था|
अगर पाक जाना हे ,तो दुबई से जाओ  या फिर बाघा बार्डर से बस जाती हे| ओर अब उसका  टिकिट मिलना मुशकिल क्योंकि बस पूरी फुल थी|
मुझे याद हे हम सभी सिर्फ भाग रहे थे , बस स्टॉप फिर बस स्टॉप से कहीं ओर मैं ओर मेरे साथी जो की मुझ से बहुत  सीनियर थे | मुझे किसी बात की चिंता नहीं थी सारा मीडिया इसी जुगाड़ मैं लगा था की बस , सिर्फ बस हो जाए |तभी रात को करीब 9 बजे  पता चला कि एक बस एक्सट्रा जाएगी | सभी के चहरे चमक गए जैसा मुझे पता चला कि इस सबके पीछे राजदीप जी ओर जसवंत जी की  मेहनत थी |जो भी हो हम सब पाक जाने वाली बस मैं सवार हो गए ओर बस दिल्ली से वाघा बार्डर की तरफ चल दी |
ये सफर पूरी रात का था , हमारी बस के आंगे एक पुलिस की गाड़ी चल रही थी जो की  किसी भी अनहोनी को रोक सके |
दरअसल भारत से कुछ नेता कुछ पत्रकार ओर भी कुछ लोंगों का डेलीगेसन  पाक जा रहा था ओर मीडिया उनको कवर करने |
इस लिस्ट मैं बहुत सारे लोग थे लालू जी, राजीव शुक्ल जी ओर भी लेकिन सारा केंद्र बिन्दु थे लालू जी |
जहां तक मुझे याद हे उस डेलीगेसन का नाम सफमा था । फिलहाल रात का वक़्त था ओर बस तेज़ी से अपने गंतव्य की ओर जा रही थी | मेरे साथ वाली सीट पर एक लड़का बैठा हुआ था नाम मुझे नहीं याद ,लेकिन वो पाक से था ओर हिन्दू  था | वो किस शहर मैं रहता था आज याद नहीं लेकिन उसके साथ जो बातें की उसकी कुछ यादें अब भी हैं | मुझे बताया की हमको भारत आने का वीसा बहुत मुश्किल से मिलता हे हम  जब वीसा की लाइन मैं  लगे होते हैं मारा जाता हे | ओर भी बातें हुई ओर उसने कभी ये नहीं कहा की हमारा पाक, नापाक हे |  सुबह हम बार्डर पर थे |ओर हम सबको  बस से उतार कर एक बस मैं शिफ्ट कर दिया क्योंकि पैदल बार्डर को क्रॉस कर नहीं सकते थे | सभी बस मैं खड़े हो कर बार्डर को क्रॉस किया जो भी खाना पूरी 

मंगलवार, 10 जून 2014

आपके  पास  अगर आपकी यादें  ना हों तो आपके  जीवन को धिक्कार  हे। आप क्या सोच कर जियंगे।
खाली  वक़्त  मैं  आपकी  यादें  हीं आपकी हम सफ़र  होतीं  हैं  कुछ ऐसी ही  यादें हैं जो कभी मेरे सफ़र मैं, हम सफ़र बन कर चली /
रोज़  की तरह सुबह हुई  हाथ मैं पराठा और  ट्रैन को पकड़ने के लिए दौड़। पापा की आवाज़, निकल जाएगी फिर घर से निकलोगे। लेकिन ऐसा होता नहीं था ट्रैन को पकड़ ही लेता था / और  जैसे ही ट्रैन के अंदर दाखिल हुआ। की सामने इलू-पीलू  नज़र आए।
कुछ लिखने से पहले कुछ आपको बता दूँ / कि ये सफर कब और कहाँ होता था
दरअसल मेरा कॉलेज आगरा मैं था और मुझे कोसी कलां से आगरा  रोज आना जाना होता था / और इस सफर मैं कभी अच्छे   तो  कभी बुरे लोग मिले /
हमेशा की तरह आज भी इलू पीलू ने उस सीट पर नज़र डाली की जहाँ लड़की हो,
जैसे ही हम स्लीपर मैं दाखिल हुए  की सामने लक्ष्मण भाई अरे तुम आओ लक्ष्मण मुझ से बड़े थे और म. ड  कर रहे थे बहुत ही सुलझे हुए सिर्फ अपनी पढ़ाई  से मतलब और मैं उनके साथ चल दिया /
ट्रैन ने स्टेशन को पीछे छोड़ दिया था लेकिन  हम अभी तक सीट की तलाश कर रहे थे और कुछ देर के बाद हम सभी एक लेडिस कूपे मैं बैठने  के लिए दाखिल हुए  उस कूपे मैं कोई भी महिला यात्री नहीं थी
इलू पीलू सबसे पहले उस कूपे मैं समां गए और भी कछ लोग थे /और कूपा फुल ठीक तभी एक  आवाज़ आई आप यहाँ बैठ सकते हैं /
नजर गई देखा एक सुन्दर सी  लड़की और एक सरदार जी बैठे हुए है लेकिन  हम कहाँ बैठेंगे मन यही सोच रहा था की सरदार जी बोले आप यहाँ बैठ जाओ , मैं ऊपर  वाली सीट  पर   चला जाता हूँ /
मैं और लक्ष्मण उस सीट पर बैठ गए।
लेकिन कुछ देर के बाद मैंने देखा की कूपे के अंदर से इलू पीलू कुछ तो गड़बड़ कर रहे हैं
जिसकी वजह से वो लड़की परेशान  हे और ये समझते मुझे देर नहीं लगी की इलू-पीलू दोनों उस लड़की को आँख मार रहे थे।
मैंने उस लड़की की तरफ देखा ,
उसने मुझे अपनी सीट पर शिफ्ट होने को बोला और मैं और लक्ष्मण दोनों  शिफ्ट हो गए अब उस लड़की को इलू-पीलू  नज़र नहीं आ रहे थे।
इधर इलू-पीलू दोनों मुझे अंदर से ईशारे  कर रहे थे ये क्या किया लेकिन मैंने उन दोनों को शांत किया और लक्ष्मण भाई  से बातें करने लगा /
कि तभी एक चाय वाला गुजरा।
और उस लड़की ने चाय बाले को रोका भाई चाय देना जब तक चाय बाला  कप मैं चाय डाले उसने सीधे मुझ से पूछा  चाय लेंगे आप। एक बार मन किया मना कर दूँ , लेकिन उसने चाय बाले को बोलकर मेरे और लक्ष्मण भाई के लिए भी चाय बनवा दी हम ने उसको थैंक्स बोला वैसे भी सफर मैं बहुत काम लोग ऐसे मिलते हैं जो आपको खाने पीने के लिए पूंछे और डर भी रहता हे की कब कौन आपको कुछ खिला पिला दे लेकिन यहाँ लूटने का डर कहां , दो चुस्किया चाय की ली थीं की उस लड़की ने मेरी और देख कर कहा ,
आपको मैंने कुछ दिनों पहले देखा था ,
मैंने भी उसको सीधा सा उत्तर दिया हम रोज़ सफर करते हैं  बिलकुल अपने देखा होगा ,
जी नहीं उस लड़की ने कहा ,मैंने आपको एक स्टेशन पर ऊधम करते देखा था.
अब मैं थोड़ा सोच मैं पड गया आखिर कब कहां  मुझे इस लड़की ने देखा हे
तभी उस लड़की ने कहा आपको अगर याद हो तो आप एक पत्थर के खम्बे पर चढ़ कर मस्ती कर रहे थे /
मुझे कुछ याद  आया की करीब एक महीने पहले मैं और मेरे कुछ दोस्तों ने बिल्लौचपुरा  स्टेशन पर खूब ऊधम किया था /
दरअसल ट्रैन वहां रुक गयी थी और  अपने दोस्तों के साथ हम टाइमपास कर रहे थे।
लेकिन कोई हम को इस तरह से देखेगा सोचा नहीं था
मैंने उस लड़की को बोला लेकिन इस बात को एक महीना हो गया होगा और आपको अभी तक याद हे
वो मुस्कराई और खिड़की के बाहर  देखने लगी . सुबह की ठंडी हवा उसकी जुल्फों को उड़ा रही थी
  तो मेरा मज़ाक उड़ा  रही थीं। और मुझे सोचने के लिए मज़बूर कर रही थी की क्या सफर मैं लोग इतना भी गौर करते हैं /
तभी फिर से एक समोसे बाला  आया  और उसने हमको फिर समोसे खिलाए , और हम उसका शुक्रिया अदा किया और राजा मंडी स्टेशन पर उत्तर गए /
लेकिन आज भी जब कभी सफर मैं होता हूँ सोचता हूँ क्या फिर से मुलाकात होगी किसी हमसफ़र से सफर मैं।
फिलहाल ये सफर यहीं ख़त्म होता ,

नीरज जय तिवारी